Friday 13 February 2015

काली सब्जी, सूखी तरकारी

फारसी भाषा में एक शब्द है सब्ज: या सब्जा, जिसका मतलब है हरा रंग, हरियाली या हरी घास। इसी शब्द से बना है सब्जी। जिसका शब्दकोश में मतलब है- साग-भाजी, हरे पत्ते और तरकारी आदि। सब्ज यानी हरे रंग से संबंधित होने की वजह से सब्जी का मूल अर्थ हरे पत्तों या हरी सब्जी से ही था, मगर वर्तमान में हम आलू, सफेद मूली और फूल गोभी, पीले पेठे, लाल टमाटर और गाजर तथा बैंगनी बैंगन आदि को भी सब्जी ही कहते हैं। हद तो यह है कि सब्जी को हरी सब्जी भी कहते हैं, यह कुछ ऐसा ही है जैसे काले को काला श्याम कहें।
सब्जी के लिए हिन्दी में एक शब्द है साग। यह शब्द संस्कृत के शाक: या शाकम् से बना है जिसका अर्थ है भोजन के लिए उपयोग में आनी वाली वनस्पतियां, हरे पत्ते या कंद, मूल, फल आदि। इसे कहीं-कहीं साक या शाक भी कहते हैं। यही वजह है कि वेजीटेरिअन को शाकाहारी कहा जाता है। साग के साथ एक और शब्द आता है भाजी जैसे सागभाजी। भाजी पकी हुई सब्जी को कहते हैं जैसे पाव-भाजी। प्रसंगवश यह भी कि मराठी में बेसन के पकोड़ों को भजिया कहा जाता है। अब भजिये का बीकानेरी भुजिया से क्या महज तले जाने का तक का ही संबंध है?
सब्जी के साथ एक और शब्द जुड़ा रहता है तरकारी। ज्ञात रहे सब्जी और तरकारी दोनों शब्द ही फारसी के हैं जो उर्दू से होते हुए हिन्दी में आए हैं। हालांकि तरकारी और सब्जी का एक ही अर्थ समझा जाता है, यानी सागभाजी। अर्थ एक होने के बावजूद दोनों में बहुत अंतर है। $फारसी भाषा में दो शब्द हैं पहला है तर: यानी तरा जिसका मतलब है सागभाजी या तरकारी। दूसरा शब्द है तर जिसका मतलब है गीला, एकदम ताजा और संतुष्ट। जाहिर है पानी से भीगा होना, एकदम तर-औ-ताजा होना ही साग-सब्जी की खासियत है। माना जाता है कि यह तर शब्द फारसी में संस्कृत की तृप् धातु से बना है जिससे बने तृप्त-परितृप्त शब्द का अर्थ भी यही हैं यानी प्रसन्न और संतुष्ट।
यह तो तय है कि तरकारी का तर होना बहुत जरूरी है पर पता नहीं हम क्यों सूखी सब्जी को भी तरकारी ही कहते हैं। इस बात की पुष्टि के लिए तरकारी से निकले दो और शब्दों का जिक्र करते हैं यानी तरी और करी का। तरी सब्जी के झोल जिसे कहीं-कहीं रसा भी कहा जाता है, को कहते हैं और करी से अर्थ है मसालों का शोरबा या झोल। इसमें कभी-कभी अण्डे या मांस भी डाला जाता है। अगर इसमें सिर्फ बेसन डाल लिया जाए तो यह करी से कढ़ी बन जाएगी। करी में थोड़ी अंग्रेजियत झलकती है जबकि कढ़ी में ठेठ देशीपन है। तभी तो हम आलू या प्याज की कढ़ी बनाते हैं और अॅग की करी।

तंदूर, चपातियां और मीनार

तंदूर का इतिहास करीब चार हज़ार साल से ज्यादा पुराना है। दुनिया के पहले तंदूर के सबूत हड़प्पा-मुअन-जो-दड़ो की खुदाई में मिले थे। तंदूर मूलत: हिब्रू भाषा का शब्द है, इसे अरबी में तनूर या तन्नूर कहते हैं जो $फारसी भाषा में जाकर यह तंदूर हो गया। तनूर का मूल सेमिटिक धातु के न्रू है, जिसमें चमक, रोशनी, उजाले का भाव है। इससे ही बना हिब्रू का नार शब्द जिसका मतलब हुआ आग। यही न्रू अरबी में नूर बना जिसका अर्थ है प्रकाश या चमक। इसी नूर में त उपसर्ग लगा कर तनूर बना। हिन्दी और उर्दू में जिसे तंदूर कहते हैं उसे इराक के कुछ हिस्सों में इसे तिन्नुरू, अज़रबैजान में तंदिर, आर्मीनिया में तोनीर और जार्जिया में इसे तोन कहते हैं।
जब आग और रोशनी जिक्र आ गया तो एक और शब्द की बात करलें। न्रू, नूर और नार से एक और शब्द बना है मीनार। जैसे दिल्ली में कुतबुद्दीन ऐबक के नाम पर बनी विश्वप्रसिद्ध कुतुबमीनार। मीनार का आमतौर अर्थ लिया जाता है, बहुत ऊँचा खम्बा या इमारत। हिन्दी में इसके लिए शब्द है स्तंभ या स्तूप। हालांकि मीनार के लिए सही शब्द है प्रकाश-स्तंभ। अरबी मूल का यह शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है। म और नार। नार का मतलब आपको बताया ही है आग या रोशनी। पुराने समय में राहगीरों के लिए ऊंचे स्तूपों या स्तंभों पर रात में आग जला कर रखी जाती थी ताकि रात में सफर करने वाले उसे देखकर सही दिशा में आ सकें। अरबी भाषा का एक  कानून है कि कुछ शब्दों के आगे म उपसर्ग लगा देने से वह स्थान का अर्थ देने लग जाता है, जैसे $कत्ल के आगे म लगाने से बनता है मक़्तल यानि वह स्थान जहां $कत्ल किए जाते हैं। इसी तरह नार का अर्थ है आग और मनार वह जगह जहां आग जलाई जाती है। यानी सही शब्द भी मनार न कि मीनार। इसका बहुवचन भी मीनारें या मनारे नहीं बल्कि मनाइर होता है। हिब्रू में चिराग, लैम्प या दीये को मनोरा कहते हैं जो अरबी में जाकर हुआ मनार।
हमारे यहां चपाती का मतलब तवे की पतली रोटी होता है। मानक हिंदी कोश के अनुसार संस्कृत में इसे चर्पटी कहा जाता है, जिसमें चर्पट यानी चपत निहित है। इस अर्थ में चकले पर बेलन से बेल कर बनाई गई रोटी की बजाय हाथ से चपत मार बनाई गई रोटी को चपाती कहते हैं। इस लिहाज से तंदूरी रोटी या बाजरे की रोटी ही चपाती की श्रेणी में आती हैं।
रोटी के बारे में हमारे कोश कुछ भी नहीं बोलते, पर कुछ इसे संस्कृत के रोटि और प्राकृत रोट्ट से जोड़ते हैं। रोट्ट रोटी का भारी-भरकम रूप है, जिसे आप डबल रोटी (दूगनी रोटी) या खमीर उठाकर बनाई गई रोटी भी कह सकते हैं। इसे पाव-रोटी कहने वालों के लिए जानकारी है कि पुर्तगाली भाषा में रोटी को ही पाव कहते हैं। सवाल है फिर बेल कर बनाई जाने वाली रोटी को क्या कहेंगे? इस रोटी को तवे पर सेक कर फुलाया जाता है इसलिए इसे फुलका कहा जाता है। अगर आकार में यह छोटा है तो फुलकी भी कह देते हैं। तवे पर फुलाने के कारण फुलका और तेल में तलकर फुलाने से यह पूरी या पूड़ी बन जाती है। अगर रोटी को दो-तीन परतों में बना लिया जाए तथा तवे पर ही तेल या घी पिलाया जाए तो उसे परांठा कहेंगे।

(आलेख में कुछ जानकारियां श्री अजित वडनेरकर के ब्लॉग shabdavali.blogspot.in से साभार ली गयी हैं।)

Tuesday 3 February 2015

बटर-चिकन बनाम नवनीत-ताम्रचूड़

लगभग सारे मांसाहारी पदार्थों के नाम या तो अंग्रेजी में हैं या फिर अरबी, फारसी और तुर्की भाषा में हैं। हालांकि उत्तर भारतीयों ने उन्हें अपने ढ़ंग से मुर्गा-शुर्गा, कुक्क्ड़-सुक्क्ड़, बोटी-सोटी या लाल मांस कह कर कुछ देशी टच दिया है। आश्चर्य होता है कि हिन्दी वाले यहां कैसे मात खा गए? इसकी एक वजह जो मुझे समझ आई, वो आपसे साझा करता हूं। कल्पना करें, जब किसी होटल के मेन्यू में 'बटर-चिकन' की जगह आपको 'नवनीत-ताम्रचूड़' या 'मक्खन-कुक्कुट' लिखा हुआ मिले, तब आपको कैसा लगेगा? मुर्ग फारसी और चिकन अंग्रेजी भाषा के शब्द हैं, इसे हिन्दी में कुक्कुट या ताम्रचूड़ कहते हैं। इसी तरह बटर को नवनीत या मक्खन कहा जाता है। हालांकि ज्यादातर भारतीय नवनीत का अर्थ नए से लगाते हैं, यहां तक कि वे लोग भी जिनका नाम नवनीत है। जबकि हमारे यहां मक्खनसिंह या मक्खनलाल नाम बिना हिचकिचाहट रखे जाते हैं।
मुझे लगता है मांसाहारी लोग शेक्सपिअर के उस कथन में ज्यादा यकीन रखते हैं कि-'नाम में क्या रखा है।' सच भी है नाम में रखा भी क्या है, जब बात स्वाद की हो। अगर नाम की बात करें तो एक बेहद लोकप्रिय व्यंजन है मुर्ग-मुसल्लम, जिसका नाम नहीं खाने वाले भी जानते हैं। इसे भारत, पाकिस्तान के अलावा लगभग सारे दक्षिण एशिया में मुर्ग-मुसल्लम बोला और लिखा जाता है। मुर्ग तो आप जानते ही हैं मुर्गे को कहते हैं और मुसल्लम का अर्थ है समग्र, समुचा, अखण्ड। बात कुछ हज्म नहीं होती कि जिस मुर्गे के पंख उतार दिए, पंजे और गर्दन काट दी वह मुसल्लम कैसे हो सकता है? असल में यह मुसल्लम नहीं मुसन्नम है। अरबी भाषा में सम्न मतलब है तेल या घी होता है, और मुसम्न का अर्थ हो गया तेल या घी में गहरा तला हुआ। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि यह मुसम्मन जिसका मतलब होता है मोटा-ताजा चर्बी चढ़ा हुआ। यह बात इसलिए स्वीकार नहीं होती कि सारे मुर्गे तो मोटे और चर्बीले नहीं हो सकते। इसी तरह एक और आम-फहम मांसाहारी खाना है बिरयानी। पहली बात तो यह कि इसका नाम बिरयानी नहीं बिर्यानी है। फारसी में बिर्यां का अर्थ है भुना हुआ। इस व्यंजन में चावलों में भुना हुआ गोश्त डाला जाता है इसलिए इस पुलाव को बिर्यानी कहते हैं। 
कुछ और बहुत ही आम-फहम शब्द हैं, जो हर तीसरे मांसाहारी व्यंजन के साथ जुड़े रहते हैं जैसे-चिकन रोगन जोश, मटन रोगन जोश और शाही रोगन जोश। इनमें दो शब्द कॉमन हैं- रोगन और जोश। पहली बात तो यह कि यह रोगन नहीं रौग़न है, जो अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है घी या तेल। आपने सुना हो बादाम रौग़न, यानी बादाम का तेल। दूसरा शब्द है जोश इसका मतलब गोश्त ही है उत्साह नहीं। ऐसा ही एक मांस का प्रसिद्ध व्यंजन है हलीम। दरअसल इसका सही उच्चारण है लहीम। जिसका अरबी भाषा में अर्थ ही मांस है, जबकि हलीम का मतलब है सहनशील या गंभीर। कुछ लोग यख्ऩी को भी एक व्यंजन मान लेते हैं, जबकि यह बिना मसाला डाले बनाया गया गोश्त का वह शोरबा(सूप) है जो अकसर मरीजों के लिए बनाया जाता है।
अगर बात करें कबाब की तो यह कई प्रकार के होते हैं जैसे- क़ाकोरी कबाब, शामी कबाब और टुण्डा कबाब आदि। बहुत से खानेवाले कबाब का अर्थ ही मांस से लगाते हैं जबकि कबाब कीमे की तली हुई टिक्कियों या सीख पर सेकी हुई नलियों को कहते हैं। अब बात करते हैं उपरोक्त नामों के साथ कबाब के रिस्ते की। पहला है क़ाकोरी कबाब। क़ाकोरी बना है तुर्की भाषा के क़ाक़ शब्द से जिसका मतलब है सुखाया हुआ माँस। शामी कबाब का ताल्लुक शाम देश से है, जिसे आजकल सीरिया कहते हैं, वहां बनाया जाने वाला विशेष कबाब ही शामी कबाब है। कुछ लोगों का मानना है यह शामी नहीं सामी है जिसका अर्थ है श्रेष्ठ। तीसरा है टुण्डा कबाब जो एक हाथ वाले खानसामे हाजी मुराद अली के नाम जुड़ा है। कुछ शब्द और भी हैं जैसे- कोरमा, भुना हुआ मांस। कीमा कूटा हुआ मांस और कोफ्ता कूटे हुए मांस की गोलियां और अंत में यह भी कि हमारे यहां मटन से मुराद मांस या बकरे का गोश्त है, जबकि शब्दकोश के अनुसार मटन सिर्फ भेड़ का मांस होता है।

नाहार, निराहार और नाश्ता

फारसी भाषा में एक शब्द है नहार जिसका अर्थ है दिन या दिवस। इसे ध्यान में रखते हुए दिन के पहले खाने को नहारी कहते हैं, जो आजकल बिगड़कर निहारी हो गया है। पुराने जमाने में जिस शोरबेदार गोश्त को खमीरी या रात की बची हुई रोटी के साथ खाया जाता था उसे नहारी कहते थे। यही वजह है कि आज भी शोरबे वाले गोश्त को नहारी या निहारी कहते हैं। फारसी भाषा में नाहार शब्द का अर्थ है सुबह से भूखा। जिसे राजस्थानी और पंजाबी में निरनैकाळजै कहते हैं। फारसी में यह शब्द संस्कृत के शब्द निर-आहार से गया है, जो समय के साथ निर-आहार, निराहार से वहां नाहार हो गया।
सुबह के इस पहले हल्के-फुल्के भोजन को नाश्ता भी कहा जाता है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि उर्दू के सबसे प्रतिष्ठित शब्दकोश फर्रहंग-ए-अस्फिया के अनुसार नाश्ता सुबह के पहले भोजन को नहीं सुबह खाली पेट होने की स्थिति को कहते हैं। जैसे कहा जाता है कि मुझे थोड़ी भूख महसूस हो रही है, वैसे कहा जाता कि मुझे कुछ नाश्ता सा महसूस हो रहा है। अंग्रेजी में इसे ब्रेकफास्ट कहा जाता है जो दो शब्दों से बना है ब्रेक और फास्ट। अंग्रेजी में दो ब्रेक हैं, पहला है Brake जिसका अर्थ है- रोक या रोधक। यह ब्रेक वाहनों में लगा होता है। दूसरा है Break जिसका अर्थ है विराम या तोडऩा। इसका प्रयोग टीवी कार्यक्रमों में अंतराल के लिए आजकल बहुत प्रचलन में हैं। दूसरे अर्थ में है रिकॉड ब्रेक करना या तोडऩा। ब्रेक-फास्ट में भी यही ब्रेक इस्तेमाल होता है। अंग्रेजी में फास्ट (Fast) के भी दो अर्थ हैं, उपवास और द्रुत या तेज। ब्रेकफास्ट कुल अर्थ यह हुआ कि उपवास तोडऩा। रात्रि-भोजन के बाद सुबह के पहले भोजन के बीच एक लम्बा अंतराल आ जाता है, इसलिए उसे उपवास ही मान लिया जाता है और सुबह के पहले भोजन से वह उपवास तोड़ा जाता है इसलिए उसे ब्रेक-फास्ट कहते हैं।
हिन्दी में नाश्ते के लिए तीन-चार पर्याय हैं- जलपान, अल्पाहार, कलेवा और चायपानी। यह चारों ही शब्द सुबह के पहले भोजन का अर्थ नहीं देते। पहला शब्द लेते हैं जलपान। जल का अर्थ है पानी और यहां पान का अर्थ है पीना। जैसे धूम्रपान बीड़ी-सिगरेट पीना या मद्यपान- शराब पीना। इस अर्थ में पानी पी लिया तो नाश्ता हो गया। जलपान अतिथि को दिन में कभी भी करवाया जा सकता है। दूसरा शब्द है अल्पाहार। अल्प मतलब थोड़ा और आहार मतलब भोजन और दोनों का सामुहिक अर्थ है थोड़ा सा भोजन करना। यह भी दिन में किसी भी समय किया जा सकता है, कुछ लोग होते ही अल्पाहारी हैं। तीसरा शब्द है कलेवा। राजस्थानी में भी नाश्ते को कलेवा ही कहते हैं। इसका अर्थ भी थोड़ा सा कुछ खाना है, जो किसी भी समय खाया जा सकता न कि सुबह का पहला भोजन। चौथा शब्द है- चायपानी। हम अकसर थोड़ी सी भूख लगने पर या मेहमान के आने पर थोड़ा सा चाय-पानी कर लेते हैं। इस चाय और पानी में कुछ हल्के-भारी खाने के साथ चाय हो यह जरूरी नहीं है, यहां दूध, कोल्डड्रिंक, शरबत आदि कुछ भी हो सकता है। वैसे हम भारतीयों के बारे मशहूर है-एवरी टाइम इज टी टाइम।
अंग्रेजी में नाश्ते के लिए भारत में एक और शब्द प्रचलन में हैं-ब्रन्च। यह शब्द ब्रेकफास्ट और लन्च से मिलकर बना है। दरअसल ब्रन्च देरी से किया गया ब्रेकफास्ट या जल्दी किया गया लन्च है, न कि नाश्ता। आप शाम को चार-पांच बजे रखे गए ऐसे बहुत से कार्यक्रमों में आमन्त्रित रहे होंगे जहां आपको कार्यक्रम के बाद ब्रन्च का भी निवेदन किया गया होगा। परिभाषा के हिसाब से शाम का यह नाश्ता ब्रन्च की श्रेणी में नहीं आता। इस नीयम के आधार पर आपके लिए एक पहेली है। देर से किया गए दोपहर के भोजन (लन्च)और जल्दी किए गए रात्रि भोजन (डिनर) से मिलकर नया शब्द क्या बनेगा? जवाब मन ही मन में बोलें। प्रसंगवश यह भी कि सुबह का नाश्ता राजा की तरह, दोपहर का भोजन राजकुमार की तरह और रात का खाना भिखारी की तरह करना चाहिए। यानी सुबह का पहला भोजन रात के दस-बारह घन्टे बाद होता है इसलिए भरपेट एक राजा की तरह करना चाहिए, दोपहर का भोजन राजकुमार की तरह हल्का और चुन-चुनकर खाना चाहिए। रात का भोजन भिखारी तरह रूखा-सूखा और थोड़ा सा करना चाहिए।

Monday 5 January 2015

गाली जैसी ही गालियां

मूलत: गालियां दो तरह की होती हैं। पहली जिन्हें हम श्लील कहते हैं, ये गालियां सामने वाले के हावभाव या गुणों को देख कर दी जाती हैं जैसे- कुत्ता, गधा, उल्लू या बन्दर आदि । दूसरे किस्म की गालियां जो अश्लील की श्रेणी में आती हैं वो हमारे तथाकथित सभ्य समाज का वो चेहरा है जो गुस्से की हवा चलते ही उघड़ जाता है । दरअसल ये गालियां पितृ-सत्तात्मक व्यवस्था से उपजे 'मर्द' की दमित यौन-कुंठाएं हैं । सामाजिक जिम्मेदारियों और सभ्य लेखन की मजबूरियों के मद्देनजर यहां सिर्फ पहली किस्म की गालियों का ही जिक्र हो सकता है, सो वही कर लेते हैं।पहली गाली जो आपने निकाली भी है और सुनी भी है वो है बेवकूफ। कमअक्ली या ग़लतियां करने वाले को अक्सर बेवकूफ कहते हैं। वकूफ अरबी भाषा का शब्द है जिसका मतलब है रुकना या डटे रहना। बे-वकूफ वह होता है जो बिना रुके कोई भी काम करता है, जैसे लगातार बोलता है या खाता रहता है उसे बेवकूफ कहते हैं।
एक और गाली है चुगद। कुछ लोग इसे दूसरी श्रेणी में भी रख लेते हैं, पर यह भी विशुद्ध सात्विक किस्म की ही गाली है। सही शब्द है चुग़्द। अक्सर हम गाली देते हुए मूर्ख आदमी को निरा चुग़्द कह देते हैं। इस शब्द का अर्थ उल्लू। उल्लुओं की कई किस्में हैं, उनमें सबसे छोटे उल्लू को चुग़्द कहते हैं। उल्लू से जुड़ी एक और गाली है- उल्लू का पट्ठा। हम पता नहीं क्यों इसे उल्लू का बेटा या बच्चा मान लेते हैं। दरअसल पट्ठे का मतलब है शिष्य या चेला खासतौर पर पहलवान बनने वाला शिष्य। इसके साथ ही एक और गाली है जो बिगड़कर दूसरी श्रेणी में चली गई । फारसी का शब्द है चूली, जिसका अर्थ है कायर, डरपोक, क्लीव या नामर्द। यह चूली व्यक्तिगत स्तर पर चूलिया हो गया और आगे जाकर यह क्या बना गया सब जानते ही हैं।
सीधे तौर पर गधा तो गाली है कि पर एक और गाली है खरदिमाग। आमतौर हम समझते हैं खर यानी गधा और खर दिमाग माने गधे जैसे दिमाग वाला। फारसी में खर का गधे के अलावा एक और अर्थ है बड़ा। खरदिमाग यानी बड़े या ऊँचे दिमाग वाला, घमंडी। खर कई शब्दों के साथ पढ़ा-सुना होगा पर इस समय याद नहीं आएगा। ऐसा एक शब्द है- खरबूज। बूज कहते हैं मीठे को खर और बूज यानी बड़ा (आकार में) मीठा फल। साथ ही एक और शब्द है तरबूज। यानी वह मीठा फल तो तर हो, यानी पानी से भरपूर हो। लगे हाथ यह भी कि कुछ क्षेत्रों में तरबूज को हन्दवाना भी कहा जाता है जो पंजाबी में आकर दुहाणा हो गया और राजस्थानी में मतीरा। खर से एक शब्द है खरगोश। खर मतलब गधा। गोश का अर्थ है कान। फारसी में कहा जाता है कि गोश गुजार कर रहा हूं। यानी आपके कानों के लिए अर्ज है। खरगोश का अर्थ हुआ गधे जैसे कानों वाला।

Sunday 4 January 2015

शातिर और दबंग

आम धारणा है कि भाषा को अनपढ़ या कम पढ़े-लिखे लोगों ने बिगाड़ा है। सच्चाई इसके बिलकुल उल्ट है, भाषा की जो जड़ें तथा-कथित पढ़े-लिखे वर्ग ने खोदी हैं वैसी अनपढ़ तो कर ही नहीं सकता। हालांकि लेखकों, कवियों और शायरों से शुद्ध भाषा की उम्मीद नहीं रखी जाती उनके यहां तो नए विचार और कल्पना की उड़ान तो हो सकती है शुद्ध व्याकरण नहीं। लेकिन पत्रकार जो किसी भी लिखने वाले से ज्यादा पढ़ते और लिखते हैं, वे जब भाषा का जनजा निकालते हैं तो आश्चर्य होना स्वभाविक है। आज के मीडिया ने शब्दों के लिए अपने ही अर्थ घड़ लिए हैं, अकसर जिनका वास्तविक अर्थों से दूर-दूर तक कोई वास्ता तक नहीं होता। ऐसा ही दो शब्द है दबंग और शातिर।
शब्दकोश दबंग का अर्थ बताता है- जो किसी ने न दबे, निडर, बेधड़क, प्रभावशाली, दिलेर। अब इन अर्थों में कहां है गुण्डागर्दी या बदमाशी का भाव? आजकल के अखबार और टीवी दबंगों की दबंगाई के किस्से न जाने किन अर्थों में सुना और बता रहे हैं। आज से मात्र दस-बारह साल पहले तक दबंग एक सम्मानजनक और आदर योग्य शब्द था, पर जब से यह शब्द मीडिया के हत्थे चढ़ा है इसके अर्थ ही बदल गए। आज दबंग दो टके का गुण्डा बनकर रह गया है, जिसका काम अपने क्षेत्र में आतंक फैलाना भर रह गया है।
दूसरा शब्द है शातिर। इस शब्द को अक्सर शातिर चोर, शातिर बदमाश, शातिर लुटेरा जैसे अलंकारों के साथ पढ़ा-सुना होगा। पहली नजर में शातिर का अर्थ छटा हुआ या खतरनाक जैसा लगता है। ह$कीकत में शतरंज के खिलाड़ी को शातिर  कहते हैं, जैसे गोल्फ खेलने वाले को गोल्फर और फुटबॉल खेलने वाले को फुटबॉलर। शातिर महज एक माहिर खिलाड़ी होता जो न तो खतरनाक है और न ही छटा हुआ। क्या विश्वानाथ आनंद या गैरी कास्परोव किसी भी तरह से खतरनाक लगते हैं। हद तो तब हो जाती है जब कहा जाता है कि चार शातिर पकड़े, उनसे तमंचा और स्मैक बरामद। कोई भी भाषा को जानकार बेहोश हो सकता है जब किसी समाचार-पत्र में यह पढ़े कि- 'बहुत शातिर होते हैं मच्छर...।' बीबीसी की हिन्दी सर्विस वाले तो इसके लिए सारी हदें ही लांघ गए। वो लिखते हैं- 'कौअे से भी शातिर होते हैं चिपांजी...।'
अरबी भाषा के इस शब्द के साथ डॉ. हरदेव बाहरी द्वारा सम्पादित हिन्दी के सबसे प्रतिष्ठित शब्दकोश ने भी वही किया जो आम आदमी करता आ रहा है। डॉ. बाहरी इसका अर्थ बताते हैं- परम धूर्त, काइयाँ और चालाक। हमारे भाषा-विज्ञानियों ने शतरंज के खिलाड़ी के लिए सही शब्द शातिर छोड़कर पतंगबाज की तर्ज पर एक नया शब्द घड़ लिया है- शतरंजबाज। इसके लिए एक कहावत याद आती है- कुँए में ही भांग पड़ी हुई है। अन्दाजा है कि पहली बार बहुत तेज दिमाग ठग या धोखेबाज अपराधी के लिए शातिर दिमाग अपराधी इस्तेमाल हुआ होगा। धीरे-धीरे दिमाग गायब हो गया रह गया महज शातिर अपराधी। बाद में अपराधी भी गायब हो गया और सिर्फ शातिर रह गया। इस तरह एक अच्छा-भला शतरंज का खिलाड़ी बन गया छटा हुआ अपराधी।

काँइयां और लीचड़

गालियों  का प्रचलन समाज में कब से प्रारम्भ हुआ और सबसे पहले किसने किसको गाली दी थी तथा सुनने वाले पर उसकी प्रतिक्रिया किस रूप में प्रकट हुई थी- यह शोध के लिए एक मजेदार विषय हो सकता है। मान्यता है कि गालियों का प्रादुर्भाव भाषा के विकास के साथ-साथ ही हुआ होगा। तीक्ष्ण, अप्रिय और अपमानित करने वाले शब्दों को 'गाली' माना गया है। शब्द-प्रहार, शस्त्र-प्रहार से कहीं अधिक घातक और मर्मभेदी हो सकता है, और प्राय: होता भी है। स्मरण कीजिए, महाभारत का वह प्रसंग जब द्रोपदी ने दुर्योधन का उपहास 'अंधे का अंधा' कहकर किया था, जिसके परिणाम में महाभारत जैसा भीषण युद्ध हुआ। रामचरित मानस का वह प्रसंग भी जब लक्ष्मण ने परशुराम को नसीहत देते हुए कहा है- वीर व्रती तुम धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।।
गालियों का एक दूसरा पहलू यह भी है कि वे मानव-जाति के परस्पर सम्बन्धों को अनायास उद्घाटित करती हैं। यूँ तो गालियाँ विश्व की लगभग सभी भाषाओं और बोलियों में कही-सुनी जाती हैं, किन्तु भारत में गालियों का अपना अलग ही अन्दाज है। भारत में गायी हुई गालियों का बुरा नहीं माना जाता। कदाचित् इसीलिए हमारे यहाँ विवाह-शादियों में तथा होली जैसे त्यौहारों पर गालियों को गाने की पुरातन प्रथा चली आ रही है। विवाह मेंं महिलाओं के द्वारा और होली पर पुरुषों के द्वारा गायी जाने वाली और उमंगमय गालियों का कोई बुरा नहीं मानता। जबकि अन्य किसी अवसर पर दी हुई किसी की भी गाली हमें गोली की तरह बींध कर रख देती है और क्षणभर में खून-खराबे की नौबत आ जाती है।
गालियों के अनेक प्रकार हैं। कुछ गालियाँ जाति-बोधक होती हैं, तो कुछ संबंध बोधक। कुछ गालियाँ मानव की विकलांगता से जुड़ी होती हैं, तो कुछ उसके स्वभाव से। कई गालियाँ मानव का जानवरों से तादात्म्य स्थापित करती हैं, तो कई गालियों में उसके बौद्धिक स्तर की धज्जियाँ उधेड़ दी जाती हैं। आज के दोनों शब्द इन संदर्भो में गाली की ही श्रेणी में आते हैं।
लीचड़ शब्द सबने सुना ही होगा, हो सकता कुछ का वास्ता लीचड़ों से पड़ा भी हो। शब्दकोश इसकी उत्पत्ति के बारे में कुछ नहीं कहता पर डॉ. हरदेव बाहरी के शब्दकोश में इसका अर्थ है- सुस्त, काहिल और नाकारा। बहुत से लोग लीचड़ कंजूस और चिपकू किस्म के आदमी को भी कहते हैं और कुछ घटिया व्यवहार करने वाले को।
इसके सारे अर्थ स्वीकार कर भी लें तो भी सवाल अपनी जगह है कि यह शब्द किस भाषा का है और आया कहां से? जानकर आश्चर्य होगा कि यह शब्द अंग्रेजी शब्द लीच (Leech)से बना है जिसका अर्थ है जोंक। यह पानी का एक कीड़ा है जो शरीर से चिपक कर खून चूसता है। यही वजह है कि अधिक चिपकने वाले आदमी को भी जोंक कहा जाता है। इसी लीच में हिन्दी का तड़का लगा कर नया शब्द से बना लीचड़।
इसी तरह एक शब्द है काँइयां। शब्दकोश में इसका अर्थ है चालाक, धूर्त या मक्कार। इस शब्द के पीछे एक रोचक कहानी है। बरसों से हरियाणा, राजस्थान और पंजाब में यूपी और बिहार से लोग काम-काज के लिए आते रहे हैं। यूपी और बिहार से आये ये लोग आपस में बात करते हुए एक दूसरे को 'ऐ हो भइया' या 'कैइसन हो रे भइया' कह कर बुलाते-पुकारते थे, इसी वजह से उनका नाम 'भइया' चलन में आ गया।
ऐसे ही राजस्थान के लोग नौकरी और व्यवसाय के लिए बंगाल और असम जाते रहे हैं। ये राजस्थानी बंगाल और असम रहते हुए आपस में बात करते हुए 'काईं है, काईं करै है, काईं चाइजै' आदि बोलते रहते थे। इन राजस्थानियों के चालाकी के किस्से तो सारे देश में मशहूर हैं ही। यही वजह है कि वहां के लोग इन चालाक राजस्थानियों को 'काँई-काँई' बोलने के कारण काँइयां कहने लगे और धीरे-धीरे यह शब्द सारे देश में प्रचलित हो गया।