Sunday 4 January 2015

काँइयां और लीचड़

गालियों  का प्रचलन समाज में कब से प्रारम्भ हुआ और सबसे पहले किसने किसको गाली दी थी तथा सुनने वाले पर उसकी प्रतिक्रिया किस रूप में प्रकट हुई थी- यह शोध के लिए एक मजेदार विषय हो सकता है। मान्यता है कि गालियों का प्रादुर्भाव भाषा के विकास के साथ-साथ ही हुआ होगा। तीक्ष्ण, अप्रिय और अपमानित करने वाले शब्दों को 'गाली' माना गया है। शब्द-प्रहार, शस्त्र-प्रहार से कहीं अधिक घातक और मर्मभेदी हो सकता है, और प्राय: होता भी है। स्मरण कीजिए, महाभारत का वह प्रसंग जब द्रोपदी ने दुर्योधन का उपहास 'अंधे का अंधा' कहकर किया था, जिसके परिणाम में महाभारत जैसा भीषण युद्ध हुआ। रामचरित मानस का वह प्रसंग भी जब लक्ष्मण ने परशुराम को नसीहत देते हुए कहा है- वीर व्रती तुम धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।।
गालियों का एक दूसरा पहलू यह भी है कि वे मानव-जाति के परस्पर सम्बन्धों को अनायास उद्घाटित करती हैं। यूँ तो गालियाँ विश्व की लगभग सभी भाषाओं और बोलियों में कही-सुनी जाती हैं, किन्तु भारत में गालियों का अपना अलग ही अन्दाज है। भारत में गायी हुई गालियों का बुरा नहीं माना जाता। कदाचित् इसीलिए हमारे यहाँ विवाह-शादियों में तथा होली जैसे त्यौहारों पर गालियों को गाने की पुरातन प्रथा चली आ रही है। विवाह मेंं महिलाओं के द्वारा और होली पर पुरुषों के द्वारा गायी जाने वाली और उमंगमय गालियों का कोई बुरा नहीं मानता। जबकि अन्य किसी अवसर पर दी हुई किसी की भी गाली हमें गोली की तरह बींध कर रख देती है और क्षणभर में खून-खराबे की नौबत आ जाती है।
गालियों के अनेक प्रकार हैं। कुछ गालियाँ जाति-बोधक होती हैं, तो कुछ संबंध बोधक। कुछ गालियाँ मानव की विकलांगता से जुड़ी होती हैं, तो कुछ उसके स्वभाव से। कई गालियाँ मानव का जानवरों से तादात्म्य स्थापित करती हैं, तो कई गालियों में उसके बौद्धिक स्तर की धज्जियाँ उधेड़ दी जाती हैं। आज के दोनों शब्द इन संदर्भो में गाली की ही श्रेणी में आते हैं।
लीचड़ शब्द सबने सुना ही होगा, हो सकता कुछ का वास्ता लीचड़ों से पड़ा भी हो। शब्दकोश इसकी उत्पत्ति के बारे में कुछ नहीं कहता पर डॉ. हरदेव बाहरी के शब्दकोश में इसका अर्थ है- सुस्त, काहिल और नाकारा। बहुत से लोग लीचड़ कंजूस और चिपकू किस्म के आदमी को भी कहते हैं और कुछ घटिया व्यवहार करने वाले को।
इसके सारे अर्थ स्वीकार कर भी लें तो भी सवाल अपनी जगह है कि यह शब्द किस भाषा का है और आया कहां से? जानकर आश्चर्य होगा कि यह शब्द अंग्रेजी शब्द लीच (Leech)से बना है जिसका अर्थ है जोंक। यह पानी का एक कीड़ा है जो शरीर से चिपक कर खून चूसता है। यही वजह है कि अधिक चिपकने वाले आदमी को भी जोंक कहा जाता है। इसी लीच में हिन्दी का तड़का लगा कर नया शब्द से बना लीचड़।
इसी तरह एक शब्द है काँइयां। शब्दकोश में इसका अर्थ है चालाक, धूर्त या मक्कार। इस शब्द के पीछे एक रोचक कहानी है। बरसों से हरियाणा, राजस्थान और पंजाब में यूपी और बिहार से लोग काम-काज के लिए आते रहे हैं। यूपी और बिहार से आये ये लोग आपस में बात करते हुए एक दूसरे को 'ऐ हो भइया' या 'कैइसन हो रे भइया' कह कर बुलाते-पुकारते थे, इसी वजह से उनका नाम 'भइया' चलन में आ गया।
ऐसे ही राजस्थान के लोग नौकरी और व्यवसाय के लिए बंगाल और असम जाते रहे हैं। ये राजस्थानी बंगाल और असम रहते हुए आपस में बात करते हुए 'काईं है, काईं करै है, काईं चाइजै' आदि बोलते रहते थे। इन राजस्थानियों के चालाकी के किस्से तो सारे देश में मशहूर हैं ही। यही वजह है कि वहां के लोग इन चालाक राजस्थानियों को 'काँई-काँई' बोलने के कारण काँइयां कहने लगे और धीरे-धीरे यह शब्द सारे देश में प्रचलित हो गया।

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