Friday 13 February 2015

तंदूर, चपातियां और मीनार

तंदूर का इतिहास करीब चार हज़ार साल से ज्यादा पुराना है। दुनिया के पहले तंदूर के सबूत हड़प्पा-मुअन-जो-दड़ो की खुदाई में मिले थे। तंदूर मूलत: हिब्रू भाषा का शब्द है, इसे अरबी में तनूर या तन्नूर कहते हैं जो $फारसी भाषा में जाकर यह तंदूर हो गया। तनूर का मूल सेमिटिक धातु के न्रू है, जिसमें चमक, रोशनी, उजाले का भाव है। इससे ही बना हिब्रू का नार शब्द जिसका मतलब हुआ आग। यही न्रू अरबी में नूर बना जिसका अर्थ है प्रकाश या चमक। इसी नूर में त उपसर्ग लगा कर तनूर बना। हिन्दी और उर्दू में जिसे तंदूर कहते हैं उसे इराक के कुछ हिस्सों में इसे तिन्नुरू, अज़रबैजान में तंदिर, आर्मीनिया में तोनीर और जार्जिया में इसे तोन कहते हैं।
जब आग और रोशनी जिक्र आ गया तो एक और शब्द की बात करलें। न्रू, नूर और नार से एक और शब्द बना है मीनार। जैसे दिल्ली में कुतबुद्दीन ऐबक के नाम पर बनी विश्वप्रसिद्ध कुतुबमीनार। मीनार का आमतौर अर्थ लिया जाता है, बहुत ऊँचा खम्बा या इमारत। हिन्दी में इसके लिए शब्द है स्तंभ या स्तूप। हालांकि मीनार के लिए सही शब्द है प्रकाश-स्तंभ। अरबी मूल का यह शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है। म और नार। नार का मतलब आपको बताया ही है आग या रोशनी। पुराने समय में राहगीरों के लिए ऊंचे स्तूपों या स्तंभों पर रात में आग जला कर रखी जाती थी ताकि रात में सफर करने वाले उसे देखकर सही दिशा में आ सकें। अरबी भाषा का एक  कानून है कि कुछ शब्दों के आगे म उपसर्ग लगा देने से वह स्थान का अर्थ देने लग जाता है, जैसे $कत्ल के आगे म लगाने से बनता है मक़्तल यानि वह स्थान जहां $कत्ल किए जाते हैं। इसी तरह नार का अर्थ है आग और मनार वह जगह जहां आग जलाई जाती है। यानी सही शब्द भी मनार न कि मीनार। इसका बहुवचन भी मीनारें या मनारे नहीं बल्कि मनाइर होता है। हिब्रू में चिराग, लैम्प या दीये को मनोरा कहते हैं जो अरबी में जाकर हुआ मनार।
हमारे यहां चपाती का मतलब तवे की पतली रोटी होता है। मानक हिंदी कोश के अनुसार संस्कृत में इसे चर्पटी कहा जाता है, जिसमें चर्पट यानी चपत निहित है। इस अर्थ में चकले पर बेलन से बेल कर बनाई गई रोटी की बजाय हाथ से चपत मार बनाई गई रोटी को चपाती कहते हैं। इस लिहाज से तंदूरी रोटी या बाजरे की रोटी ही चपाती की श्रेणी में आती हैं।
रोटी के बारे में हमारे कोश कुछ भी नहीं बोलते, पर कुछ इसे संस्कृत के रोटि और प्राकृत रोट्ट से जोड़ते हैं। रोट्ट रोटी का भारी-भरकम रूप है, जिसे आप डबल रोटी (दूगनी रोटी) या खमीर उठाकर बनाई गई रोटी भी कह सकते हैं। इसे पाव-रोटी कहने वालों के लिए जानकारी है कि पुर्तगाली भाषा में रोटी को ही पाव कहते हैं। सवाल है फिर बेल कर बनाई जाने वाली रोटी को क्या कहेंगे? इस रोटी को तवे पर सेक कर फुलाया जाता है इसलिए इसे फुलका कहा जाता है। अगर आकार में यह छोटा है तो फुलकी भी कह देते हैं। तवे पर फुलाने के कारण फुलका और तेल में तलकर फुलाने से यह पूरी या पूड़ी बन जाती है। अगर रोटी को दो-तीन परतों में बना लिया जाए तथा तवे पर ही तेल या घी पिलाया जाए तो उसे परांठा कहेंगे।

(आलेख में कुछ जानकारियां श्री अजित वडनेरकर के ब्लॉग shabdavali.blogspot.in से साभार ली गयी हैं।)

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